रविवार, 26 मार्च 2017

बुढ़ार में जल्द ही रेल यात्रियों के आएंगे अच्छे दिन

मण्डल प्रबंधक ने प्रतिनिधिमण्डल को आमंत्रित कर सौहार्द्रपूर्ण चर्चा में दिए संकेत

भविष्य में रुकेंगी बहुत सी गाड़ियां- अनूपपुर मेमू बढ़ेगी शहडोल तक

बुढ़ार। रेल रोको संघर्ष समिति बुढ़ार-धनपुरी द्वारा लंबे अर्से से कोयलांचल की वृहदता, भौगोलिक विस्तार, कई गांवों का जुड़ाव और जैतपुर विधानसभा के इकलौते स्टेशन पर, यहां से गुजरने वाली गाड़ियों के ठहराव को लेकर समय-समय पर अनशन, आन्दोलन के द्वारा साउथ, ईस्टर्ने, सेण्ट्रल रेल्वे का ध्यान आकर्षित किया जाता रहा है। प्राकृतिक दोहन से बुढ़ार स्टेशन को कमाई के दर्जे में, बिलासपुर रेल मण्डल में बेहद महत्वपूर्ण और संवेदनशील दर्जा दिया गया है लेकिन यात्री सुविधाओं की दृष्टि से बुढ़ार स्थान के साथ शुरू से ही पक्षपात एवं दोहरा मापदण्ड अपनाया जाता रहा है जिससे लोगों को लगने लगा कि उनकी बात रेल्वे प्रशासन के कानों में नक्कारखाने में तूती की आवाज जैसे होकर रह गई है। इसी कारण पूर्व में यहां पर कई बार अनशन, आन्दोलन और धरना प्रदर्शन हुए तथा मण्डल में लगातार एक माह तक, जनआन्दोलन तथा प्रदर्शन कर ध्यानाकर्ण करने वाले स्टेशन के रूप में बुढ़ार जाने जाना भी लगा। हर बार न्यायोचित तथा जरूरी मांगों को किसी न किसी बहाने लटका दिया जाता रहा है जिसके चलते बुढ़ार स्टेशन पर आश्रित लगभग 5 से 7 लाख आबादी बिलासपुर रेल मण्डल के सौतेले रवैये से बेहद क्रुध्द होती जा रही है। अंततः संघर्ष समिति ने सुनिश्चित किया कि एक बार और मण्डल प्रमुख तक अपनी बात उनसे मिलकर पहुंचाई जाए और कुछ समय प्रतीक्षा की जाए। उसके बाद भी रेल प्रशासन यदि अनसुना करता है तो अपने हक की लड़ाई को नए सिरे से लड़ने की रणनीति बनाई जाए।

मण्डल रेल प्रबंधक के आमंत्रण पर हुई वार्ता

24 मार्च को बिलासपुर रेल मण्डल प्रबंधक बीजी मल्लया के आमंत्रण पर रेल रोको आन्दोलन समिति के अध्यक्ष पवन चमड़िया की अगुवाई में 4 सदस्यीय प्रतिनिधि मण्डल ने उनके कार्यालय में सौहार्द्रपूर्ण वातावरण में तर्कों सहित अपना पक्ष रखा। प्रतिनिधिमण्डल में समिति के सचिव रोहिणी प्रसाद गर्ग के अलावा प्रेम सिंघानिया और ऋतुपर्ण दवे भी शामिल थे। श्री मल्लया ने बिलासपुर मण्डल के वाणिज्यिक, यात्री परिवहन संबंधी और तकनीकी विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों को बुलाकर तत्काल वार्ता को सकारात्मक तरीके से आगे बढ़ाया और हर पहलुओं को गंभीरता से सुना। प्रमुख मांगों में स्टेशन पर बन रहे बाहर से बाहर फुट ओवर ब्रिज को प्लेटफॉर्म क्रमांक एक तथा जुड़वा प्लेटफॉर्म क्रमांक दो-तीन पर उतारने के तकनीकी पहलुओं पर भी विचार किया गया तथा इस आवश्यक्ता को भी समझा गया कि बुढ़ार के अधिसंख्य यात्री और लोग प्लेटफॉर्म क्रमांक तीन के पार के श्रेत्र में रहते हैं जिन्हें प्लेटफॉर्म क्रमांक एक पर पहुंचने के लिए कम से कम डेढ़ किमी का चक्कर काटना पड़ता है और इस चक्कर में भारी भीड़ व बाजार के चलते यात्रियों की न केवल ट्रेन छूट जाती है बल्कि जल्दबाजी में कई दुर्घटनाएं भी हो चुकी हैं। यदि बुढ़ार के प्लेटफॉर्म पर रैंप की व्यवस्था से युक्त फुटओवर ब्रिज हो जाए तो मौजूदा व भविष्य की बहुत बड़ी समस्या का बहुत ही आसानी से न केवल हल निकल आएगा बल्कि धनपुरी, राजेन्द्रा, हरदी सहित दर्जनों ग्रामीण इलाके के यात्रियों को प्लेटफॉर्म क्रमांक एक पर आने के लिए लंबी कवायद से बचना पड़ेगा। श्री मल्लया ने आश्वासन दिया कि वो अपने अधिकारियों से इस विषय पर नए सिरे से वार्ता करेंगे और कोई न कोई समाधानकारक हल निकालेंगे।

कमाकर देने वाला स्टेशन कब तक सुविधाओं से रहेगा वंचित?

प्रतिनिधिमण्डल ने आंकड़ों सहित बताया कि बुढ़ार स्टेशन को हर महीने कोयला परिवहन के जरिए करोड़ों रुपए का मालभाड़ा मिलता है। इस प्रकार कोयलांचल अपने सीने को छलनी कर देश के लिए ऊर्जा का साधन मुहैया कराता है जिसे ढ़ोकर रेल्वे साल भर में अरबों रुपए कमाता है। अतः इसी कमाई को ध्यान में रखकर बुढ़ार स्टेशन पर यात्री सुविधाओं में वैसी बढ़ोत्तरी की भी लोग अपेक्षा करते हैं। मण्डल रेल प्रबंधक ने भी माना कि बुढ़ार स्टेशन से रेल्वे को खासी कमाई होती है जो देश में तमाम रेल परियोजनाओं और रखरखाव पर खर्च की जाती है। प्रतिनिधिमण्डल ने कहा कि इस पर बुढ़ार का भी तो हक बनता है कि उसी की कमाई का कुछ हिस्सा स्टेशन पर खर्चा जाए और इस कमाई में अपने श्रम सीकर बहाने वाले देश भर से आए तमाम कोयला कर्मियों को सुविधाएं दी जाए। यह सुविधा यहां से गुजरने वाली यात्री ट्रेनों से स्टापेज के रूप में देकर कोयलांचल से कमाने के बदले उपकृत करने जैसी होगी। जबकि बुढ़ार स्टेशन पर यात्री टिकटों की पर्याप्त बिक्री है। लंबी दूरी की एकमात्र एक्सप्रेस ट्रेन उत्कल कलिंग ही रुकती है जबकि शेष सभी गाड़ियां आस-पास तक ही जाती हैं ऐसे में यह कहना कि बुढ़ार में यात्रियों के मिलने की संभावना नहीं है, न्यायोचित नहीं होगा। अभी लंबी दूरी की यात्री गाड़ियों को पकड़ने बुढ़ार स्टेशन के उपयोगकर्ता अनूपपुर या शहडोल जाते हैं जिसमें उनके टिकट से भी दो गुना राशि महज 30-35 किमी पहुंचने में व्यय हो जाती है। इस पर मण्डल रेल प्रबंधक ने पहले तो अपनी विवशता और अधिकार की बातें बताई लेकिन जब प्रतिनिधिमण्डल ने कोयला रैक और तीसरी लाइन के रूप में बुढ़ार सायडिंग को जाने वाली आधे दशक से भी पुरानी रेल लाइन और कमाई की बातें कहीं तो उन्होंने आश्वासन दिया कि इस दिशा में मण्डल की तरफ से जल्द से जल्द रेल्वे बोर्ड को प्रस्ताव भेजा जाएगा जिससे बुढ़ार में बरौनी-गोंदिया के अलावा भी अन्य एक्सप्रेस व सुपरफास्ट गाड़ियों के ठहराव के लिए कोई रास्ता बन सके। उन्होंने प्रतिनिधि मण्डल की इस बात को भी मान लिया कि प्रारंभ में सभी गाड़ियों का प्रायोगिक रूप से 6 महीने के लिए ठहराव का प्रस्ताव वो अपनी ओर से भेजेंगे उसके बाद गाड़ियां रुकने पर रेल्वे के नॉर्म्स के अनुकूल उपयुक्त बनने का जिम्मा बुढ़ार के रेल यात्रियों का होगा।

मण्डल प्रबंधक स्वयं आएंगे रू-ब-रू होने बुढ़ार

बेहद ही सहयोग और सौहार्द्रपूर्ण वार्ता के अन्त में रेल रोको आन्दोलन समिति के अध्यक्ष पवन चमड़िया और सचिव रोहिणी प्रसाद गर्ग ने मण्डल रेल प्रबंधक को बुढ़ार आने का न्यौता दिया तो उन्होंने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया और कहा कि वो जल्द से जल्द बुढ़ार आएंगे और समस्याओं को देखेंगे, समझेंगे और त्वरित निराकरण के लिए प्रयास करेंगे। श्री मल्ल्या ने बताया कि जल्द ही बिलासपुर-अनूपपुर के बीच दोहरीकरण का कार्य पूरा हो जाएगा। इससे न केवल गाड़ियों की गति बढ़ जाएगी बल्कि ट्रैक पर अतिरिक्त गाड़ियां दौड़ाने में भी सहूलियत होगी। इसके अलावा प्रस्तावित बिलासुपर-कटनी तीसरी लाइन इस पूरे अंचल के लिए किसी सौगात से कम नहीं होगी। इसके बनने के बाद तो सहूलियों में कमीं का कोई सवाल ही नहीं रह जाएगा। उन्होंने माना कि बिलासपुर रेल मण्डल के लिए कोयला परिवहन एक वरदान है जिससे मण्डल गर्व से समूचे भारतीय रेल तंत्र में अपनी एक पहचान बनाए हुए है।

मेमू को शहडोल तक बढ़ाया जाएगा

संघर्ष समिति के द्वारा अम्बिकापुर-अनूपपुर मेमू ट्रेन जो रात्रि 9 बजे के लगभग अनूपपुर आकर सुबह साढ़े 10 बजे वापस जाती है को शहडोल तक बढ़ाए जाने पर सहमति जताते हुए मण्डल प्रबंधक ने आश्वस्त किया कि वो अपनी ओर से पूरी तत्परता से कोशिश करेंगे कि यह ट्रेन शहडोल तक बढ़ जाए। इसी प्रकार चिरमिरी चंदिया को कटनी तथा अम्बिकापुर-शहडोल को आगे बढ़ाने के लिए अध्ययन कर रेल्वे बोर्ड को प्रस्ताव भेजेंगे। मण्डल रेल प्रबंधक श्री मल्लया ने आश्वस्त किया कि रेल्वे बुढ़ार स्टेशन की उपेक्षा नहीं करेगा और बुढ़ार के साथ पूरा न्याय करेगा।

हजारों अरब दे चुका बुढ़ार कब तक रहेगा उपेक्षित?

गौरतलब है कि बुढ़ार सायडिंग धनपुरी नं.3 से लगभग 50 वर्षों से भी ज्याद समय से रोजाना औसतन तीन से चार रैक कोयला बाहर भेजा जाता है जिससे अब तक रेल्वे हजारों अरब रुपए कमाए हैं। लेकिन बुढ़ार स्टेशन को सुविधा के नाम हमेशा धता बताया जाता रहा है। इसी से नाराज अंचलवासियों ने स्वप्रेरणा से आन्दोलन की भूमिका बनाई और बीते वर्षों के दौरान लगातार एक महीने तक आन्दोलन कर रेल्वे प्रशासन को बता दिया कि अब बुढ़ार की मांगों की अनदेखी रेल्वे को मंहगी पड़ सकती है। गौरतलब है कि धनपुरी में भी बुढ़ार स्टेशन से गुजरने वाली सभी गाड़ियों को रोके जाने की मांग की जाती रही है। इस संबंध में पूर्व जिला पंचायत पं.किशोरीलाल चतुर्वेदी ने रेल्वे प्रशासन को पत्र लिखकर सभी गाड़ियों के ठहराव की मांग कोयला कामगारों के हित में उठाई थी और कहा था कि मांग पूरी न होने पर बुढ़ार सायडिंग पर भी धरना प्रदर्शन किया जाकर आवाज बुलंद की जाएगी। लेकिन इस बीच संघर्ष समिति के आव्हान पर बुढ़ार सायडिंग की जगह आन्दोलन बुढ़ार स्टेशन को चुना गया। गौरतलब है कि बुढ़ार, धनपुरी, बिरूहली, बकहो, रुंगटा, खैरहा, कटकोना, करकटी सहित कोई 40 से 50 ग्रामीण क्षेत्र इस स्टेशन पर आश्रित हैं तथा पूर्वांचल, बंगाल, उत्तर और दक्षिण से हजारों कोयला कामगार और रिलायंस इण्डस्ट्रीज के कर्माचारी यहां कार्यरत हैं जिनसे रेल्वे माल भाड़ा में तो हर महीने करोड़ों कमाता है लेकिन यात्री सुविधाओं के नाम पर धता बता देता है। इस बैठक के बाद यह विश्वास बना है कि रेल्वे व बुढ़ार स्टेशन उपयोगकर्ताओं के बीच संवादहीनता की स्थिति समाप्त होगी और मण्डल प्रबंधक स्तर पर जल्द ही सभी मांगों को सुलझा लिया जाएगा।  

रिपोर्ट- रितुपर्ण दवे

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